छात्र संघ चुनाव: लोकतंत्र की नर्सरी, छात्रों की आवाज़”

विश्वविद्यालय और कॉलेजों में छात्र संघ चुनाव कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि लोकतंत्र की असली पाठशाला हैं। यही वह जगह है जहाँ छात्र संवाद करना, संघर्ष करना और समाधान निकालना सीखते हैं। अगर छात्रों को चुनाव से वंचित किया जाएगा तो यह न सिर्फ उनके अधिकारों का हनन होगा, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों पर कुठाराघात होगा।

छात्र संघ चुनाव का महत्व इस बात में है कि यह छात्रों को अपनी समस्याओं और आकांक्षाओं को संगठित रूप से उठाने का वैधानिक मंच देता है। हज़ारों छात्रों की आवाज़ तब तक बिखरी रहती है, जब तक उनके पास चुना हुआ प्रतिनिधित्व न हो। और यही प्रतिनिधित्व छात्र संघ चुनाव देता है।

चुना हुआ छात्र नेता किसी दल का एजेंट नहीं होता, बल्कि पूरे छात्र समुदाय का दूत होता है। उसकी हर आवाज़ छात्रों की आवाज़ होती है, उसका हर कदम छात्रों की उम्मीदों का आईना होता है। यही जवाबदेही प्रशासन और छात्र समुदाय के बीच संतुलन बनाती है।

यह चुनाव सिर्फ राजनीति का खेल नहीं, बल्कि नेतृत्व की पहली पाठशाला है। आज के छात्र कल के विधायक, सांसद और नीति निर्माता हैं। अगर इन्हें चुनावी प्रक्रिया से दूर रखा जाएगा तो लोकतंत्र के असली संस्कार कहाँ से आएंगे? संसद और विधानसभाओं में जो नेतृत्व चमकता है, उसकी नींव अक्सर विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनावों से ही रखी जाती है।

लेकिन चुनाव तभी सार्थक हैं, जब वे लिंगदोह समिति की सिफ़ारिशों के मुताबिक हों। लिंगदोह ने साफ कहा है –

उम्मीदवार की न्यूनतम 75% उपस्थिति हो।

कोई आपराधिक पृष्ठभूमि वाला छात्र चुनाव न लड़े।

चुनावी खर्च पर सख्त सीमा रहे।

बाहरी हस्तक्षेप और धनबल की राजनीति पर रोक हो।

प्रचार शांति, तर्क और संवाद से हो, न कि पोस्टरबाज़ी, हिंसा और गुंडागर्दी से।


अगर विश्वविद्यालय इन नियमों का पालन करेंगे तो छात्र राजनीति पारदर्शी भी होगी और अनुशासित भी।

हम यह भी मानते हैं कि छात्र संघ को सिर्फ मांग करने वाला संगठन नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन का साझीदार समझा जाए। निर्वाचित प्रतिनिधियों को संस्थान की निर्णय प्रक्रिया, शैक्षणिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी मिले। जब छात्र जिम्मेदारी में शामिल होंगे तो राजनीति सिर्फ नारेबाज़ी नहीं रहेगी, बल्कि विकास का औजार बनेगी।

यह भी सच है कि जब छात्रों के पास वैधानिक मंच होता है तो आंदोलन अनुशासित और रचनात्मक दिशा पाते हैं। बिना मंच के वही आवाज़ें अराजकता और तोड़फोड़ में बदल जाती हैं। इसलिए छात्र संघ चुनाव रोकना सिर्फ छात्रों की आवाज़ को दबाना नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय के माहौल को भी बिगाड़ना है।

हम साफ कहते हैं —
छात्र संघ चुनाव लोकतंत्र की नर्सरी हैं। जिस तरह पौधा नर्सरी में पनपकर बड़ा होकर छांव देता है, उसी तरह छात्र राजनीति में पले-बढ़े नेता ही समाज और देश को दिशा देते हैं। चुनाव रोकना लोकतंत्र के भविष्य को रोकना है।

विश्वविद्यालय और कॉलेज सिर्फ पढ़ाई की फैक्ट्री नहीं, बल्कि विचारों और नेतृत्व की प्रयोगशालाएँ हैं। जब शिक्षा संस्थान चुनाव को समर्थन देंगे, लिंगदोह की सिफ़ारिशों का पालन करेंगे और छात्रों को जिम्मेदारी, नेतृत्व व अभिव्यक्ति का अवसर देंगे — तभी लोकतंत्र मजबूत होगा और शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य पूरा होगा।

इसीलिए हम सभी छात्र कहते हैं 
छात्र संघ चुनाव न केवल जरूरी हैं, बल्कि अनिवार्य हैं।
क्योंकि यहाँ से उठेगी छात्रों की बुलंद आवाज़, यहाँ से मजबूत होंगी लोकतंत्र की जड़ें और यहाँ से तय होगा देश का सही  भविष्य।
विद्यार्थिनां स्वरः शक्तिः, संघटनं च साधनम्।
लोकतन्त्रस्य मूलं हि, छात्रसंघः प्रबोधनम्॥

दिव्यांशु सिंह 
छात्र जनसंचार विभाग 
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वद्यालय जौनपुर

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